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उच्च न्यायालय शिफ्टिंग मामले में हाईकोर्ट के ऑर्डर पर ‘सुप्रीम’ स्टे

वहीं, हाई कोर्ट के आदेश के बाद रजिस्ट्रार जनरल की ओर से उच्च न्यायालय शिफ्टिंग को लेकर अखबारों में विज्ञापन देकर राय मांगी गई थी।

हाईकोर्ट ने एक माह के अंदर सरकार को दिया था स्थान चुनने का आदेश
आदेश पर रोक लगाते हुए विपक्षियों को जारी किया नोटिस
गर्मियों की छुट्टियों के बाद 8 जुलाई को होगी मामले पर सुनवाई
नई दिल्ल। उत्तराखंड में इन दिनों नैनीताल हाईकोर्ट की शिफ्टिंग को लेकर गहमा-गहमी चल रही है। नैनीताल हाईकोर्ट द्वारा इसके लिए वोटिंग कराई जा रही है। इस मामले पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। मामले की सुनवाई करते हुए सर्वाेच्च न्यायालय की अवकाशकालीन पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा व न्यायमूर्ति संजय करोल की पीठ ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाते हुए विपक्षियों को नोटिस जारी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार से भी जवाब मांगा है। आज हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पीवीएस सुरेश बहस ने की। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीसीएस रावत ने इसकी पुष्टि की है। ये मामला अब छुट्टियों के बाद यानी 8 जुलाई के बाद लिस्टेट है।
अपना पक्ष रखने के लिए दून बार एसोसिएशन ने केविएट भी दाखिल किया था। सभी पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पीबी सुरेश, विपिन नैर, बी विनोद कन्ना, एडवोकेट ऑन रिकार्ड, डॉक्टर कार्तिकेय हरि गुप्ता, पल्लवी बहुगुणा, हाई कोर्ट बार एसोसिएशन अध्यक्ष डीसीएस रावत, सचिव सौरभ अधिकारी, बीड़ी पांडे, कार्तिक जयशंकर, रफत मुंतजिर अली, इरुम जेबा, विकास गुगलानी, योगेश पचोलिया, शगूफा खान, डॉक्टर सीएस जोशी और मीनाक्षी जोशी ने पक्ष रखा। देहरादून बार एसोसिएशन की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा व सुप्रिया जुनेजा ने अपना अपना पक्ष रखा। दून बार एसोसिएशन की तरफ से कहा गया कि नैनीताल में उच्च न्यायालय के विस्तार के लिए जगह कम है। उच्च न्यायालय में 70 प्रतिशत केस गढ़वाल डिवीजन के हैं। वादकारियों व अधिवक्ताओं के लिए प्रयाप्त सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। इसलिए इसे शिफ्ट किया जाए।

हाईकोर्ट का था यह आदेश
देहरादून। इससे पहले बीती 8 मई को उत्तराखंड उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने एक आदेश पारित किया था, जिसमें हाईकोर्ट को नैनीताल से किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट करना आवश्यक बताते हुए सरकार को निर्देश दिए गए थे कि एक माह के अंदर हाईकोर्ट के लिए स्थान का चुनाव करें।
इसके साथ ही हाईकोर्ट रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिए गए थे कि वो इस मामले में अधिवक्ताओं व वादकारियों से राय लेने के लिए एक पोर्टल बनाएं। रजिस्ट्रार जनरल को ये भी निर्देशित किया गया था कि सभी लोग 31 मई तक ही अपने विकल्प का प्रयोग करेंगे।
उच्च न्यायालय ने एक समिति का गठन करने को भी कहा था जिसके अध्यक्ष रजिस्ट्रार जनरल होंगे। इस समिति में विधायी और संसदीय मामलों के प्रमुख सचिव, प्रमुख सचिव (गृह), दो वरिष्ठ अधिवक्ता, उत्तराखंड बार एसोसिएशन से एक सदस्य और बार काउंसिल ऑफ इंडिया से एक अन्य सदस्य होंगे। इस कमेटी को सात जून तक सीलबंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट सौंपने को कहा गया था। इस प्रक्रिया के बाद सरकार की सिफारिश और विकल्पों को मुख्य न्यायाधीष के समक्ष रखा जाना था। वहीं, हाई कोर्ट के आदेश के बाद रजिस्ट्रार जनरल की ओर से उच्च न्यायालय शिफ्टिंग को लेकर अखबारों में विज्ञापन देकर राय मांगी गई थी।

शिफ्ट करने के लिए हाईकोर्ट ने दी थी यह वजह
देहरादून। हाईकोर्ट को नैनीताल से ट्रांसफर कर अन्यत्र शिफ्ट करने की वजह वनों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को बताया गया था। कोर्ट का मानना था कि वर्तमान स्थान 75 फीसदी प्रतिशत पेड़ों से घिरा है और ऐसे में अगर नई बल्डिंग बनाई जाती है तो पेड़ों को काटना पड़ेगा। इससे बचाव के लिए कोर्ट द्वारा ये भी कहा गया था कि हल्द्वानी के गोलापार में 26 हेक्टेयर का भूमि को नए स्थान के लिए प्रस्तावित किया गया है।
हाईकोर्ट ने उत्तराखंड मुख्य सचिव को न्यायालय के लिए ऐसी उपयुक्त भूमि खोजने का आदेश दिया था जहां जज, अधिकारियों और कर्मचारियों के लिए आवासीय क्वार्टर, न्यायालय कक्ष, सम्मेलन कक्ष, लगभग सात हजार वकीलों के लिए कक्ष, एक कैंटीन और पार्किंग सुविधा हो। इसके साथ ही क्षेत्र में चिकित्सा सुविधाएं और अच्छी कनेक्टिविटी भी होनी चाहिए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को एक महीने के भीतर प्रक्रिया पूरी करने को कहा था और सात जून तक रिपोर्ट पेश करने के निर्देश दिए थे। हालांकि, बार एसोसिएशन और तमाम अधिवक्ता इस फैसले के खिलाफ उतर आए थे और इसे जल्दबाजी में लिया फैसला बताया था। हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डीसीएस रावत का कहना था कि यह आदेश राज्य पुनर्गठन विधेयक के विपरीत है और प्रमुख बेंच तय करने का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है।

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