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बढ़ती गर्मी ने नहीं मौसम के अलर्ट ने बढ़ाई चिंता, बारिश से फिर सकता है साल भर की मेहनत पर पानी

ऐसे में किसानों की चिंता बढ़ गई है। बारिश और ओलावृष्टि के चलते किसानों ने गेहूं की कटाई तेज कर दी है। किसान एक दूसरे से कंबाइनों और अतिरिक्त ट्रालियों की मांग कर रहे हैं।

इन्द्रप्रीत सिंह।मौसम विभाग के ताजा अलर्ट ने किसानों की एक बार फिर से चिंता बढ़ा दी है। हालांकि बढ़ती गर्मी से उन्हें कोई चिंता नहीं है।लेकिन उन्हें चिंता इस बात की है कि मौसम विभाग ने शनिवार और रविवार को एक बार फिर से येलो अलर्ट जारी किया है और फिर से बारिश और ओलावृष्टि के चलते किसानों ने गेहूं की कटाई तेज कर दी है।

लोग एक दूसरे से कंबाइनों और अतिरिक्त ट्रालियों की मांग कर रहे हैं। सरकार के लिए अभी तक सुखद सिर्फ यह है कि अभी तक मंडियां अनाज से पाटी नहीं हैं। क्योंकि पिछले दो बार बारिश होने के चलते कटाई का काम दो से चार दिनों के लिए रुक गया।

मंडियों में बनाई जा रही अतिरिक्त गेहूं रखने की जगह

ऐसे में मंडियों से अनाज की ढुलाई हो गई और अतिरिक्त गेहूं रखने की जगह बन गई। लेकिन मंडियों में आ रहे किसानों को इस बात का दुख है कि फरवरी और अप्रैल महीन में हुई ओलावृष्टि से हुए नुकसान की न तो गिरदावरी हुई है और न ही किसी किस्म का मुआवजा मिला है।

भारी गर्मी के कारण फसलों में नमी तो कम है। केवल बारिश के दिनों में एक दो फीसदी ज्यादा हो जाती है। लेकिन अब जिस प्रकार से पंजाब की मंडियों में 8-8 लाख टन गेहूं आ रही है।

उससे सरकार की चिंताएं बढ़ रही है। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के अधिकारी मानते हैं कि अभी उतनी दिक्कत नहीं है लेकिन अगर फिर से बारिश हुई तो खरीद और ढुलाइ दोनों का काम प्रभावित हो सकता है।

पांच एकड़ फसल हुई खराब

मोरिंडा से छह किलोमीटर दूर से गांव डूमछेड़ी के केसर सिंह की 13 एकड़ जमीन में है जिसमें से 5 एकड़ में ओलावृष्टि के कारण फसल खराब हो गई लेकिन उसे कोई मुआवजा नहीं मिला। बाकी की जमीन पर पैदावार 18 क्विंटल आई है।

उन्होंने बताया कि अब बरसात से पहले हर हालत में गेहूं काटकर मंडियों में पहुंचानी पड़ेगी, हमारा पहले ही नुकसान हो चुका है।

मुआवजा न मिलने के कारण के बारे में केसर सिंह बड़े सहज भाव से जवाब देते हैं, जितना किस्मत में लिखा है उतना तो ऊपर वाला दे ही देगा। सरकारों के भरोसे नहीं रह सकते। वोटां तों पहलां बथेरा केहंदे ने , मुआवजा देवांगे, इक पैसा नहीं मिलेया।

वह दूसरी बार ट्राली लेकर आए हैं। उन्होंने बताया, फिर ये हमें कहते हैं कि आप धरनों में जाते हो। धरनों के बगैर कभी क्या सरकार ने हमारी बात सुनी है।

दौलतपुर के किसान ने कही ये बात

दौलतपुर के रतन सिंह की भी छह एकड़ जमीन खराब हुई है उनके गांव में भी कोई गिरदावरी नहीं हुई। उन्होंने बताया कि खराब हुई फसल की फिर से जुताई करके सूरजमुखी लगाने का विचार था लेकिन अगले ही दिन ही बारिश हो गई जिस कारण खेतों में पानी खड़ा हो गया।

फिर विचार त्याग दिया। वह बताते हैं हम तो चाहते हैं कि गेहूं और धान का रकबा करें और सूरजमुखी जैसी फसलें लगाएं। यह आलू के बाद लगाई जा सकती है लेकिन हमारे इलाके में दिक्कत यह है कि इसे हम चुन्नी या सरहिंद में नहीं बेच सकते , राजपुरा जाना पडता है। अन्यथा यह भी गेहूं के बराबर पैसे दे देती है।

किसान आंदोलन को लेकर क्या कहा गया

न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर सड़कों और रेल ट्रैक पर बैठे किसानों के बारे में उन्होंने कहा कि जब कोई बीमारी लगती है तो इलाज के लिए डॉक्टर के पास तो जाना ही पड़ता है। अब डॉक्टर हमें अपने पास आने ही नहीं दे रहा तो हम क्या करें? क्या सड़क हमने रोकी है? पुलिस ने रोकी है।

यह पूछने पर कि रेल ट्रैक तो आपने ही रोका है, हमें तीन महीने हो गए बैठे हुए क्या सरकारों को यह नहीं चाहिए कि वे किसानों की सुनें । यह पूछने पर कि आप लोगों को एमएसपी मिल रही है , फिर आप क्यों धरने दे रहे हैं। रतन सिंह बोले, पंजाब तो हमेशा ही दूसरे किसानों के लिए खड़ा आया है।

सात एकड़ की फसल ओलों से खराब

हुसैनपुर के गुरप्रीत सिंह और उनके भाई 26 एकड़ की खेती करते हैं। वह धरनों आदि में नहीं जाते। बताते हैं कि इतना समय कहां है? पहले ही सात एकड़ फसल ओले के कारण खराब हो गई।

पांच क्विंटल प्रति एकड़ भी नहीं निकली। आस पड़ोस वालों की ट्रालियां लेकर आज सुबह ही मंडी में आ गया ताकि अगर सुबह वाली बोली में हमारी बिक गई तो शाम को दूसरी ट्राली भी भरवा लूंगा।

बारिश का कोई भरोसा नहीं है। गुरप्रीत का अपना गांव मटरां, मोहाली एयरपोर्ट के पास है। उनकी जमीन गमाडा ने अधिगृहीत कर ली तो उनके परिवार ने सरहिंद के पास गांव हुसैनपुर में 22 एकड़ जमीन ले ली। चार एकड़ अभी भी चंडीगढ़ के पास है।

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