बोर्ड भंग होने के बाद सामने आए घोटाले
देहरादून। उत्तराखंड के दो सबसे बड़े जिले हरिद्वार और देहरादून के नगर निगम चर्चा में बने हुए हैं। दोनों निगमों पर अनियमितता और लापरवाही के आरोप लग रहे हैं। देहरादून में स्वच्छता समिति के गठन और पार्षदों के सफाई कर्मचारी रखे जाने के मामले में करोड़ों रुपयों की धांधली की बात सामने आई है। पूरे मामले की 3 सदस्य समिति जांच कर रही है। वहीं हरिद्वार में भी इसी तरह का मामला उजागर हुआ है। मनसा देवी मंदिर के लिए चलाए जा रहे रोपवे का साल 2005-06 के रुपयों की जानकारी नगर निगम के पास नहीं है। सूचना आयुक्त ने निगम के अधिकारियों को सारे दस्तावेज लेकर तलब किया है। देहरादून के नगर निगम में धांधली की जानकारी 2023 दिसंबर में लगी। 2 दिसंबर को बोर्ड भंग होने पर नई व्यवस्था लागू की गई। नई व्यवस्था के तहत मेयर का कार्यकाल खत्म हुआ और पूरी कमान प्रशासन ने अपने हाथ में ली।
इस दौरान प्रशासन को देहरादून के वार्डों में सफाई व्यवस्था के लिए गठित की गई पार्षद स्वच्छता समिति के कर्मचारियों के वेतन और पीएफ में कुछ गड़बड़ी मिली। इसके बाद निर्णय लिया गया कि स्वच्छता कर्मियों का वेतन सीधे उनके खाते में दिया जाएगा। वहीं, भौतिक सत्यापन के दौरान अधिकारियों के संज्ञान में आया कि नगर निगम में दर्ज आधे से ज्यादा कर्मचारी कभी काम पर आए ही नहीं हैं। जबकि उनकी सैलरी लगातार उनके नाम पर जारी होती रही है। नगर में ऐसे सफाई कर्मचारियों की संख्या 1021 थी।
शुरुआती जांच में पाया गया कि प्रत्येक कर्मचारी को 15 हजार रुपए प्रति महीना दिया जा रहा है। इस तरह एक महीने में नगर निगम लगभग 1.5 करोड़ रुपए का भुगतान कर्मचारियों को वेतन देने के रूप में कर रहा था। ऐसे में नगर निगम ने पिछले 5 साल में 86 करोड़ रुपए का भुगतान कर्मचारियों को वेतन के रूप में किया। इस पूरे मामले में देहरादून जिलाधिकारी सोनिका सिंह (नगर निगम प्रशासक) ने तत्काल प्रभाव से जांच के आदेश जारी करते हुए सीडीओ की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की कमेटी गठित की। कमेटी इस बात की जांच कर रही है कि आखिरकार कितने रुपयों का घोटाला हुआ है। नगर निगम प्रशासक सोनिका सिंह की मानें तो सोमवार तक कमेटी जांच रिपोर्ट उन्हें सौंप देगी।
मनसा देवी रोपवे में घोटाला
मामला हरिद्वार मनसा देवी रोपवे का है। मामले के खुलासा तब हुआ जब उत्तराखंड राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने नगर निगम के अधिकारियों को रोपवे से जुड़े कागजात लेकर बुलाया है। राज्य सूचना आयुक्त ने ये कदम इसलिए उठाया क्योंकि हरिद्वार के ही रहने वाले एक व्यक्ति ने राज्य सूचना आयुक्त से शिकायत की थी कि नगर निगम के कागजों में साल 2005-06 मनसा देवी रोपवे के राशि की कोई जानकारी नहीं है। आयुक्त द्वारा जांच में पता चला कि रोपवे को दी गई राशि और रोपवे से अर्जित हुई राशि का हिसाब-किताब दर्ज ही नहीं है। हरिद्वार में मनसा देवी रोपवे का संचालन उषा ब्रेको कंपनी करती है। जबकि इसका एक मुश्त किराया नगर निगम को देना होता है।
फिलहाल क्या है हालात
1973 में नगर निगम ने 40 साल के लिए उषा ब्रेको कंपनी को मनसा देवी पर रोपवे चलाने की इजाजत दी थी। 2013 में लीज खत्म हुई तो सरकार ने फिर 7 साल के लिए रिन्यू की। इसके बाद 2020 में कंपनी को दोबारा रोपवे चलाने की इजाजत नगर निगम ने दी। इसके एवज में हर साल 3।30 करोड़ रुपए नगर निगम को देने होते हैं। जबकि हकीकत यही है कि एक नियम के अनुसार टेंडर प्रक्रिया के बाद ही किसी को काम दिया जा सकता है।
फिलहाल राज्य सूचना आयुक्त अधिकारियों से न केवल पैसों की जानकारी लेंगे बल्कि इस बात की भी जानकारी लेंगे कि 40 साल से अधिक समय हो जाने के बाद किस तरह से रोपवे का आधुनिकीकरण किया जा रहा है। क्योंकि लगातार मनसा देवी हो या उसके आसपास के इलाकों में भीड़ बढ़ रही है। ऐसे में क्या-क्या उपाय रोपवे कंपनी और निगम के द्वारा किए गए हैं।