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मुजफ्फरनगर कांड से जुड़े मुकदमों पर हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा

जबकि दो मुकदमों के आरोपी की मृत्यु हो जाने के कारण वे शून्य हो गए हैं। किंतु दो मुकदमों से सम्बंधित फाइलें गायब हैं।

जल्द सुनवाई करने की है मांग

नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट नैनीताल ने राज्य आंदोलन के दौरान हुए मुजफ्फरनगर कांड से जुड़े मुकदमों की शीघ्र सुनवाई किये जाने को लेकर दायर अधिवक्ता रमन शाह की याचिका की सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा है। मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति आशीष नैथानी की एकलपीठ में हुई।
पिछली सुनवाई में एकलपीठ ने मुजफ्फरनगर की सीबीआई कोर्ट में उत्तराखंड राज्य आंदोलन से जुड़े लंबित वादों की स्टेटस रिपोर्ट उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश सरकारों से मांगी थी। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि मुजफ्फरनगर की सीबीआई कोर्ट में पृथक राज्य आंदोलन के दौरान हुए गोलीकांड, दुराचार आदि से सम्बंधित 6 मुकदमों की फाइलें सीबीआई की देहरादून कोर्ट ने मुजफ्फरनगर कोर्ट में स्थान्तरित की थी। इनमें से दो मुकदमे वहां विचाराधीन हैं। जबकि दो मुकदमों के आरोपी की मृत्यु हो जाने के कारण वे शून्य हो गए हैं। किंतु दो मुकदमों से सम्बंधित फाइलें गायब हैं। इन गायब हुई फाइलों में मुजफ्फरनगर गोलीकांड के आरोपी तत्कालीन जिलाधिकारी अनन्त कुमार सिंह से सम्बंधित मामला भी है।
याचिकाकर्ता रमन शाह ने तर्क रखा कि जिन दो मुकदमों को शून्य बताया जा रहा है, उनमें आरोपी एक-दो लोग नहीं बल्कि कई लोग हैं। इसलिये उन मुकदमों को शून्य नहीं माना जा सकता है। उन्होंने दो मुकदमों की फाइलें गायब होने पर भी गम्भीर सवाल उठाए हैं।
गौरतलब है कि लंबे संघर्ष के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई थी। 1994 से उत्तराखंड राज्य आंदोलन ने बहुत जोर पकड़ा था। तब हर गली और हर नुक्कड़ पर राज्य आंदोलनकारी प्रदर्शन करते थे। नैनीताल में रोज सभा होती थी। उस सभा में प्रसिद्ध लोक गायक और कवि गिरीश तिवारी गिर्दा (अब स्वर्गीय) अपने जोशीले गीतों से राज्य आंदोलनकारियों में उत्साह जगाते थे।
राज्य आंदोलन के दौरान 1 सितंबर 1994 को खटीमा में विशाल प्रदर्शन हो रहा था। तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव थे। मुलायम सिंह यादव राज्य आंदोलन को सख्ती से कुचलने के पक्षधर थे। उन्होंने पुलिस को हर वो उपाय करने की छूट दे रखी थी जिससे राज्य आंदोलन शांत हो जाए। लेकिन राज्य आंदोलनकारियों में अलग राज्य के लिए ऊंचा जोश था। खटीमा में पुलिस ने अकारण ही राज्य आंदोलनकारी प्रदर्शनकारियों पर बर्बर फायरिंग कर दी थी। उस फायरिंग में 7 राज्य आंदोलनकारी शहीद हो गए थे।
खटीमा कांड के विरोध में 2 सितंबर को मसूरी में राज्य आंदोलनकारियों ने प्रदर्शन किया तो यहां पीएसी ने बर्बरता दिखाते हुए 6 लोगों को गोली से उड़ा दिया। यही नहीं राज्य आंदोलनकारियों से नरमी से पेश आने रहे एक पुलिस अधिकारी को भी गोली मार दी गई थी। इन पुलिस उत्पीड़न की घटनाओं और राज्य की मांग को लेकर 2 अक्टूबर को बड़ी संख्या में राज्य आंदोलनकारी दिल्ली जा रहे थे। मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहे पर पुलिस ने बर्बरता की सारी हदें पार कर दी थीं। महिलाओं के साथ गलत काम हुआ था। बड़ी संख्या में लोगों को मार दिया गया था। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में ज्ञात रूप से 42 आंदोलनकारी शहीद हुए थे। यही मुजफ्फरनगर कांड अभी तक न्याय के रूप में अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है।

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