उत्तराखंड

उत्तराखंड में देवउठनी एकादशी की धूम

हवन और आरती के साथ देवताओं का तिलक किया गया। यहां उपस्थित स्थानीय भक्तों के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।

मंगलवार को गंगा स्नान के बाद रुद्रप्रयाग में पांडव लीला शुरू
रुद्रप्रयाग। एकादशी के पावन पर्व पर पांडवों के देव निशानों के साथ भरदार पट्टी के भक्तों ने अलकनंदा-मंदाकिनी के पावन संगम तट पर गंगा स्नान किया। इसके साथ ही तरवाड़ी गांव में पांडव नृत्य का मंचन भी शुरू हो गया है। पांडव नृत्य का मंचन करीब एक माह तक चलेगा। इसमें प्रवासी ग्रामीणों के साथ ही धियाणिया इस परम्परा का हिस्सा बनते हैं और अपने पूर्वजों को याद करते हुए भगवान बदरी विशाल का आशीर्वाद लेते हैं। इससे पूर्व सोमवार देर शाम ग्रामीण ढोल-दमाऊं के साथ देव निशान एवं घंटियों को स्नान कराने के लिए अलकनंदा-मंदाकिनी के संगम स्थल पर पहुंचे थे।
विगत वर्षों की भांति इस बार भी देवउठनी एकादशी की पूर्व संध्या पर दरमोला, तरवाड़ी, स्वीली-सेम गांव के ग्रामीण देव निशानों को पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ गंगा स्नान के लिए अलकनंदा-मंदाकिनी के तट पर पहुंचे। यहां पर ग्रामीणों ने रात्रिभर जागरण करने के साथ देवताओं की चार पहर की पूजाएं संपन्न कीं। इस अवसर पर भंडारे का आयोजन भी किया गया।
मंगलवार सुबह पांच बजे ग्रामीणों ने भगवान बदरीविशाल, लक्ष्मीनारायण, शंकरनाथ, तुंगनाथ, नागराजा, चामुंडा देवी, हित, ब्रह्मडुंगी और भैरवनाथ समेत कई देव के निशानों के साथ ही पांडवों के अस्त्र-शस्त्रों को स्नान कराया। इसके बाद पुजारी और अन्य ब्राह्मणों ने भगवान बदरी विशाल समेत सभी देवताओं की वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ विशेष पूजा अर्चना शुरू की। हवन और आरती के साथ देवताओं का तिलक किया गया। यहां उपस्थित स्थानीय भक्तों के जयकारों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।
इस दौरान देव निशानों ने नृत्य कर भक्तों को आशीर्वाद भी दिया। यहां पर पूजा-अर्चना के पश्चात सभी देव निशानों ने ढोल नगाड़ों के साथ अपने गंतव्य के लिए प्रस्थान किया। ग्राम पंचायत दरमोला में प्रत्येक वर्ष अलग-अलग स्थानों पर पांडव नृत्य आयोजन होता है। एक वर्ष दरमोला तथा दूसरे वर्ष राजस्व गांव तरवाड़ी में पांडव नृत्य का आयोजन होता है। इस वर्ष तरवाड़ी गांव में देव निशानों की स्थापना कर पांडव नृत्य का भव्य रूप से शुभारंभ हो गया है। मान्यता है कि इस दिन भगवान नारायण पांच महीनों की निन्द्रा से जागते हैं, जिससे इस दिन को शुभ माना गया है। सदियों से चली आ रही परम्परा के अनुसार आज तक ग्रामीण पांडव नृत्य का आयोजन करते आ रहे हैं।
तरवाड़ी निवासी किशन सिंह रावत ने बताया कि मानव जीवन की सुख समृद्धि और खुशहाली के लिए यह परम्परा पीढ़ी दर पीढ़ी चल रही है। वर्षों पूर्व स्वीली गांव, जहां पर कुल पुरोहितों का गांव है, वहां डिमरी लोग मूलतः जनपद चमोली के पिंडर गांव के निवासी थे और वर्षों पूर्व चमोली से आए। उनके साथ आराध्य भगवान बदरी विशाल और नृसिंह के निशान भी यहां आए, जिनकी वर्षों से पूजा की जाती है। हर वर्ष एकादशी के पावन पर्व पर अलकनंदा-मंदाकिनी के पावन तट पर गंगा स्नान किया जाता है और फिर पांडवों के देव निशान भरदार पट्टी के उस गांव के लिए प्रस्थान करते हैं, जहां पर पांडव नृत्य का आयोजन किया जाता है। इस वर्ष तरवाड़ी गांव में पांडव नृत्य का आयोजन किया जा रहा है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button