उत्तराखंडदेश-विदेश

उल्लुओं की हिफाजत के लिए वन विभाग ने जारी किया अर्लट

यही वजह है कि अभी से वन महकमे ने कमर कस ली है। साथ ही जंगलों में उल्लुओं की हिफाजत को लेकर गश्त बढ़ा दी है।

दिपावली पर तंत्र-मंत्र के चलते दी जाती है उल्लू की बली
देहरादून। दीपावली पर्व आते ही उल्लुओं की जान पर आफत आ जाती है। आफत की वजह कोई बीमारी या प्राकृतिक बदलाव नहीं। बल्कि, इंसानी अंधविश्वास है। इसी अंधविश्वास के चलते कुछ लोग दिवाली पर तंत्र-मंत्र, साधना या सिद्धि पाने की लालच में इन उल्लुओं की बलि देते हैं। जिससे लुप्तप्राय इन उल्लुओं की तमाम संकट में आ गए हैं। यही वजह है कि अभी से वन महकमे ने कमर कस ली है। साथ ही जंगलों में उल्लुओं की हिफाजत को लेकर गश्त बढ़ा दी है।
भारत में बलि प्रथा जैसी कुरीतियों से तो जन जागरूकता के बाद छुटकारा मिल गया, लेकिन अब भी अंधविश्वास का अंधेरा लोगों को भ्रमित कर रहा है। ऐसे ही एक अंधविश्वास ने उल्लू को संकट में ला दिया है। खास बात ये है कि यह अंधविश्वास ऐसे समय पर सबसे ज्यादा प्रबल हो जाता है, जब देशभर में लोग बुराई पर अच्छाई की विजय का त्योहार दीपावली मनाने की तैयारी कर रहे होते हैं।
दरअसल, दीपावली से पहले धन की देवी मां लक्ष्मी के वाहन माने जाने वाले उल्लूओं के शिकार का खतरा बढ़ जाता है। इस बात की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि दीपावली से करीब एक महीने पहले ही वन विभाग अलर्ट जारी कर देता है। इस कड़ी में उत्तराखंड वन विभाग ने भी प्रदेश भर में उल्लुओं के शिकार की संभावना को देखते हुए अलर्ट जारी कर दिया है। उल्लुओं की तस्करी के अक्सर देशभर के कई राज्यों में मामले सामने आते रहे हैं। माना जाता है कि दीपावली पर तांत्रिक काला जादू करने के लिए उल्लू के अंग का इस्तेमाल करते हैं। जिससे धन संपदा पाने के साथ ही वशीकरण और गंभीर बीमारियां दूर करने का दावा किया जाता है। किसी अंधविश्वास के लिए दीपावली पर उल्लू की डिमांड बढ़ जाती है। डिमांड बढ़ने के साथ इसके शिकार की संभावना भी बेहद ज्यादा हो जाती है। तांत्रिक उल्लू की बलि देकर इसके नाखून, चोंच, पंख, और आंखों का इस्तेमाल कर तंत्र विद्या के जरिए लोगों की समस्या का पल भर में उपाय करने का दावा करते हैं और इसी अंधविश्वास में लोग फंस जाते हैं।
दुनियाभर में उल्लू की करीब 250 प्रजातियां मौजूद हैं। जिसमें से 50 प्रजातियों को खतरे में माना गया है। भारत की बात करें तो यहां उन लोगों के करीब 36 प्रजातियां मौजूद हैं, जिसमें ज्यादा प्रजाति संकटग्रस्त सूची में शामिल हैं। हालांकि, सबसे ज्यादा अवैध व्यापार में उल्लुओं की 16 प्रजातियों को दर्ज किया गया है। इनमें से मुख्य रूप से ब्राउन हॉक उल्लू, कॉलर वाला उल्लू, चित्तीदार उल्लू, रॉक ईगल उल्लू, धब्बेदार कास्ट उल्लू, एशियाई बैरड़ उल्लू, बोर्न उल्लू शामिल हैं। जिन पर अवैध शिकार के चलते लगातार खतरा मंडरा रहा है। उल्लू को पारिस्थितिकी तंत्र का बेहद महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि उल्लू तमाम कीटों और छोटे जीवों की संख्या को नियंत्रित करने का काम करता है। अपने इसी अहम रोल के कारण उल्लू किसानों का भी बेहद अहम हिस्सा या मित्र माना जाता है। दरअसल, उल्लू एक शिकारी पक्षी है। जो छोटे जीवों और कीड़ों को खाकर जीवन बिताता है। इसमें चूहे, मेंढक, छिपकली और कीड़े शामिल हैं। वैसे उल्लुओं की औसत आयु 25 साल मानी जाती है। अपने इस जीवन काल में वो पारिस्थितिकी तंत्र को नियंत्रित करने का महत्वपूर्ण काम करता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button