
महासू शब्द की उत्पत्ति महाशिव से हुई
चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बुठिया महासू व चालदा महासू
विकासनगर। प्रकृति की गोद में बसे इस प्रसिद्ध मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है। ये मंदिर है महासू देवता का है, जिनके दर से कोई खाली हाथ नहीं लौटता। खास बात ये है कि इस मंदिर का कनेक्शन राष्ट्रपति भवन से भी बताया जाता है। मिश्रित शैली की कला को समेटे हुए ये खूबसूरत मंदिर देहरादून से 190 किलोमीटर की दूरी पर मशहूर पर्यटक स्थल चकराता के पास हनोल गाँव में टोस नदी के पूर्वी तट पर मौजूद है। महासू शब्द की उत्पत्ति महाशिव से हुई है।
एक हैरानी वाली बात ये है की महासू देवता एक नहीं बल्कि चार देवताओं का सामूहिक नाम है। चारों महासू भाइयों के नाम बासिक महासू, पबासिक महासू, बुठिया महासू, जिन्हे बोठा महासू भी कहा जाता है और चौथे है चालदा महासू महाराज है। मंदिर की कहानी को लेकर पौराणिक कथाओं में अलग अलग उल्लेख है।
दंत कथा के अनुसार चार भाई महासू कुल्लू कश्मीर से आए हैं। बताया जाता है कि टौंस नदी के आसपास के क्षेत्रों में एक किरमिक नाम के राक्षस का आतंक था। इस राक्षस से पूरी जनता परेशान थी। राक्षस से छुटकारा दिलाने के लिए महेंद्र निवासी हुणाभाट नाम के एक ब्राह्मण ने तपस्या की, जिसके बाद चार भाइयों की उत्पत्ति हुई, जिनका नाम था महासू। महासू ने किरमिक राक्षस का वध करते हुए पूरे क्षेत्र से उसका आतंक खत्म हो गया। इसके बाद पूरे क्षेत्र में महासू की देवता के रूप में पूजा की जाने लगी और इन्हें न्याय के देवता की उपाधि दी गई।
उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी, संपूर्ण जौनसार-बावर क्षेत्र, रंवाई परगना के साथ साथ हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, शिमला, बिशैहर और जुब्बल तक महासू देवता की पूजा होती है। कहा जाता है की राष्ट्पति भवन से मंदिर में नमक भेजा जाता है। राष्ट्पति भवन के कनेक्शन की पड़ताल जब हमारी टीम ने की तो पता चला की राष्ट्पति भवन से कुछ वर्षाे पहले तक एक पारसल हर साल यहां आता रहा है। लेकिन पारसल में नमक की बात तो कही साबित नहीं हुई।
बल्कि एक विशेष धूपबत्ती मंदिर के लिए जरूर आया करती थी। धूपबत्ती नमक की तरह दिखती थी, जिसके चलते इसे कुछ लोग नमक भी कहने लगे। पार्सल पर दिल्ली का पता लिखा होता था, जो अब कुछ वर्षों से नहीं आ रही है। महासू देवता को न्याय के देवता और इस मन्दिर को न्यायालय के रूप में भी माना जाता है। वर्तमान में मंदिर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) के संरक्षण में है।