उत्तराखंड

तस्मिया में आयोजित हुआ जलसा ‘सीरत-उन-नबी

उन्होंने इंसानों के हुक़ूक़, मां-बाप की सेवा और बच्चों को सही तालीम देने की बात पर जोर दिया। साथ ही नशे, बुराइयों और फिल्मी असरात से बचने की सलाह दी।

मानवता, शिक्षा व समाज सेवा को आगे आये युवाः उलेमा
इंसानों के हुक़ूक़, मां-बाप की सेवा व बच्चों को शिक्षा-संस्कार देने की जरूरतः डॉ एस फारुक
देहरादून। सीरत उन नबी कमेटी देहरादून की ओर से एक रूहानी और प्रेरणादायक कार्यक्रम ‘सीरत-उन-नबी’ का आयोजन टर्नर रोड स्थित तस्मिया संग्रहालय में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ समाजसेवी डॉ. एस. फारूक ने की। इस मौके पर अनेक मशहूर उलेमा-ए-कराम और इस्लामी विद्वानों ने शिरकत की और हुजूर सरवर-ए-कायनात हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सल्ललाहु अलेही वसल्लम की सीरत-ए-पाक और इंसानियत के लिए उनके पैग़ाम पर रोशनी डाली।
कार्यक्रम का आगाज़ मौलाना असरार अहमद की तिलावत-ए-क़ुरआन और सय्यद शहजादे की नात-ए-पाक से हुआ, जिसने माहौल को नूरानी बना दिया।
हाफिज हुसैन साहब पीरजी बुढ़यावी ने कहा कि क़ुरआन हमारे पास एक अमानत है, इसमें किसी तरह की ख़यानत नहीं होनी चाहिए। उन्होंने कुरआन की तालीम को समझने और उस पर अमल करने की अहमियत को रेखांकित किया।
मुख्य वक्ता मुफ्ती ज़कावत क़ासमी शैख़-उल-हदीस, मदरसा अमीनिया, दिल्ली ने मोहम्मद साहब की सीरत पर तफसीली रोशनी डालते हुए कहा कि हुजूर तमाम इंसानियत के लिए रहमत बनकर आए। उन्होंने पैग़ंबर की पैदाइश से पहले के जमाने की सामाजिक, धार्मिक और नैतिक गिरावट का ज़िक्र करते हुए बताया कि किस तरह आप ने इंसानों को बराबरी का दर्जा दिया और सामाजिक इंसाफ की बुनियाद रखी। उन्होंने इंसानियत, शिक्षा और खिदमते-खल्क की अहमियत पर भी प्रकाश डाला।
मुफ्ती सलीम क़ासमी ने पैगंबर मोहम्मद साहब की शिक्षाओं पर आधारित एक प्रेरणादायक मुक़ालमा पेश किया, जिसमें इंसानियत, मोहब्बत और खिदमत को ज़िंदगी का मकसद बताया गया।
अध्यक्षीय भाषण में डॉ. एस. फारूक ने कहा कि क़ुरआन हमारी निजात का ज़रिया है। इसे समझ कर, सोच कर और अमल करके ही हम अपनी ज़िंदगी को कामयाब बना सकते हैं। उन्होंने इंसानों के हुक़ूक़, मां-बाप की सेवा और बच्चों को सही तालीम देने की बात पर जोर दिया। साथ ही नशे, बुराइयों और फिल्मी असरात से बचने की सलाह दी। इस मौके पर मौलाना रिसालुद्दीन हक्कानी के पुत्र हाफिज सअद को कुरआन मुकम्मल करने पर दस्तारबंदी कर सम्मानित किया गया, जिसे उपस्थित लोगों ने सराहा।
मौलाना कबीरुद्दीन फ़ारान ने कुरआन की फजीलत बयान करते हुए इसे रोशनी का सरचश्मा बताया। उन्होंने कहा कि क़ुरआन सिर्फ मुसलमानों के लिए नहीं, बल्कि पूरी इंसानियत के लिए हिदायत है।
शहर क़ाज़ी मौलाना मोहम्मद अहमद क़ासमी की पुरखुलूस दुआ के साथ यह रूहानी जलसा सम्पन्न हुआ।
इस मौके पर मौलाना रिसालुद्दीन हक्कानी, मुफ्ती नाजिम अशरफ, मौलाना एजाज़, मुफ्ती वसी उल्लाह कासमी, मुफ्ती जिया उल हक, मौलाना गुलशेर क़ासमी, मौलाना क़ासिम क़ासमी, मौलाना असद क़ासमी, कारी एहसान, कारी शाहवेज, हाफिज गुलज़ार, कारी वसीम, कारी मुबारक, कारी फरहान मलिक, मौलाना महताब क़ासमी, मौलाना रागिब मजाहिरी, मौलाना मंजर अलम, मोहम्मद इम्तियाज, मुफ्ती मुस्तफा क़ासमी, मौलाना अब्दुल रब नदवी, इनाम अली, अशरफ हाशमी व डॉ ताहिर अली समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहे।

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