उत्तराखंड

कमलेश्वर महादेव मंदिर में घृत कमल पूजा संपन्न

जब सभी देवताओं ने माता भगवती से सहायता मांगी, तो उन्होंने हिमालय पुत्री के रूप में जन्म लेने का वचन दिया।

श्रद्धालुओं ने पूजा कर सुख-समृद्धि की कामना

श्रीनगर। कमलेश्वर महादेव मंदिर में अतीत से चली आ रही घृत कमल पूजा का भव्य आयोजन माघ शुक्ल पक्ष सप्तमी तिथि को किया गया। मंदिर में दिव्य अनुष्ठान मंगलवार देर रात्रि तक चला, जिसमें मंदिर के महंत आशुतोष पुरी ने परंपरा का निर्वहन करते हुए दिगंबर अवस्था में परिक्रमा की। इस दौरान भगवान शिव को 52 प्रकार के भोग अर्पित किए गए। मंदिर परिसर में सैकड़ों श्रद्धालु इस अनूठी पूजा के दर्शन करने के लिए उमड़े।
महंत आशुतोष पुरी ने जगत कल्याण हेतु दिगंबर अवस्था में परिक्रमा की। इस दिव्य अनुष्ठान में सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया और भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की। मंदिर में घंटियों की ध्वनि, मंत्रोच्चार और श्रद्धा का वातावरण बना रहा। इस दौरान काफी तादाद में श्रद्धालु मौजूद रहे, जिन्होंने भगवान शिव की उपासना कर सुख-समृद्धि की कामना की।
पौराणिक मान्यता के अनुसार, राक्षस तारकासुर ने ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान मांगा था। लेकिन ब्रह्मा जी ने इसे अस्वीकार करते हुए कहा कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र के हाथों होगी। यह सोचकर कि भगवान शिवजी कभी विवाह नहीं करेंगे, उसने यह वरदान स्वीकार कर लिया। वरदान के प्रभाव से तारकासुर ने ब्रह्मांड में आतंक मचाना शुरू कर दिया। जब सभी देवताओं ने माता भगवती से सहायता मांगी, तो उन्होंने हिमालय पुत्री के रूप में जन्म लेने का वचन दिया।
भगवान शिव के पुनः गृहस्थ जीवन की ओर प्रेरित करने के लिए देवताओं ने कामदेव को भेजा, जिन्होंने उनकी तपस्या भंग करने का प्रयास किया। क्रोधित भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया, जिसके बाद रति ने विलाप किया। देवताओं के अनुरोध पर शिवजी ने कामदेव को द्वापर युग में अनिरुद्ध के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया। देवताओं ने भगवान शिव को विवाह के लिए मनाने हेतु कमलेश्वर महादेव लिंग की पूजा की। तब से इस पूजा में विशेष विधियां अपनाई जाती हैं। कालांतर में इस पौराणिक परंपरा का निर्वहन मंदिर के महंत द्वारा किया जाने लगा।

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